History of Bhagat Singh: भगत सिंह एक ऐसा नाम है जिसे भारत का बच्चा बच्चा जानता है। भारत के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी बहुत ही कम उम्र में ही देश के लिए अपना प्राण निछावर कर दिया था। साहस, स्वाभिमान, आत्मविश्वास, त्याग और बहादुर के मिसाल भगत सिंह जिन्होंने मात्र 25 साल की उम्र में ही देश के लिए हंसते-हंसते फांसी चढ़ गए थे।
इतना तो सभी जानते हैं आज के इस आर्टिकल मैं हम आपको महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के सच्ची कहानी बताने जा रहे हैं। इस कहानी में आपको ऐसे ऐसे तथ्य पता चलेंगे जो शायद ही आपने कहीं सुने होंगे। अगर आप महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के पूरी कहानी जानना चाहते हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए है इसे हम तक जरूर पढ़ें।
History of Bhagat Singh
यह बात आज से 118 साल पहले सन 28 सितंबर 1907 की है। जब पाकिस्तान भारत का अंग था यानी के पाकिस्तान भारत से अलग नहीं हुआ था। उस समय अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाया हुआ था। उस समय भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1960 को पंजाब के लयाल जिले के एक छोटे से गांव बंगा में हुआ था। भगत सिंह के पिता का नाम केसरी सिंह था वही माता का नाम विद्यापति कौन था।
दोस्तों भगत सिंह के परिवार के लोग निडर और साहसी थे जिसके वजह से भगत सिंह बचपन से ही काफी लीडर और साहसी बालक थे। उनके हिम्मत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है क्या उनसे बड़े उम्र वाले बच्चे भी इसे डरते थे।
एक बार की बात है भगत सिंह अपने पिता के साथ खेत में गए और वहां उन्होंने अपने पिता से सवाल किया कि पिताजी आप लोग इन खेतों में क्या कर रहे हो। जवाब में पिता ने कहा कि हम लोग खेतों में बीज बोते हैं जिसमें अनाज और फल भी उगते हैं। इसको सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि अगर ऐसा है तो हम लोग खेतों में बंदूक क्यों नहीं बोते हैं। इसे है अंग्रेजों के के मरने के काम आएंगे। अगर हमारे पास ढेर सारे बंदूक होंगे तो हम लोग अंग्रेजों का सामना बड़ी आसानी से कर पाएंगे।
दोस्तों अपने बेटे भगत सिंह के मुंह से इस तरह की बातें सुनकर पहले तो उनके पिता काफी हैरान होते हैं लेकिन मन ही मन काफी खुश होते हैं कि उनका भी पुत्र अभी से ही देशभक्त की भावना से प्रेरित हो रहा है। जैसे-जैसे भगत सिंह बड़े होते गए उनके मन में देशभक्ति की भावना घर करने लगे।
13 अप्रैल 1919 यह वह दिन था जब भगत सिंह की आंखों के सामने कुछ ऐसा हुआ जिसने उनको झांझोर कर रख दिया। और अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश भर दिया। क्योंकि इस दिन इतिहास का सबसे बड़ा नरसिंघार हुआ था। दोस्तों यह थी पंजाब प्रांत के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग हत्याकांड। जिसमें अंग्रेज के एक अधिकारी जनरल डायर ने रॉलेट एक्ट के तहत चल रही एक सभा में बिना किसी कारण के हजारों बेकसूर लोगों पर गोलियां चलवा दी थी। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार लगभग हजार लोगों की मृत्यु उसे टाइम पर हुए थे।
दोस्तों जब इस घटना के बारे में भगत सिंह को पता चला तो वह पैदल 20 किलोमीटर चलकर उसे घटना वाले स्थान पर पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्होंने जो देखा वह काफी दर्दनाक था। यह घटना देखकर उन्होंने इन सभी का बदला लेने का ठान लिया और खून से लगभग एक मुट्ठी मिट्टी लेकर घर आ गए। आपको जानकर हैरानी होगी कि उसे समय भगत सिंह की उम्र मात्र 12 साल थी।
1 अगस्त 1920 यह वह तारीख था जब महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के शुरुआत किए थे। जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई भी भारतीय नागरिक ब्रिटिश अधिकारी का साथ ना दें। सभी सरकारी नौकरियां छोड़ दें, मजदूर फैक्ट्री से निकल आए और बच्चे सरकारी स्कूल में जाना बंद कर दे कोई भी सरकार को किसी प्रकार का कोई टैक्स न दे। सरे ब्रिटिश कपड़े जला दे।
दोस्तों इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था कि ब्रिटिश सरकार के सभी कार्यकाज बंद हो जाए महात्मा गांधी ने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि अगर हमने ऐसा किया तो हमें 1 साल के अंदर आजादी मिल जाएगी।
आपको जानकर हैरानी होगी दोस्तों की भगत सिंह का परिवार महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रेरित थे। साथी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उनके असहयोग आंदोलन का भी समर्थन करते थे। आप आश्चर्य होंगे कि सरदार भगत सिंह बहुत छोटे उम्र में ही महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे और बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हुए उनके मांगों का समर्थन करते थे।
दोस्तों फिर एक दिन 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के एक चोरा चोरी नामक एक स्थान पर पुलिस ने जबरन इस जुलूस को रोकना चाहा। जिसके फल स्वरुप जनता आक्रोश में आ गई और थाना को ही जला दिया। जिसमें एक थानेदार और 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से महात्मा गांधी काफी नाराज हुए और अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिए। यह कहकर कि अभी हमारा देश प्रथम स्वतंत्रता के लिए तैयार नहीं है।
महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने पर भगत सिंह के मन में महात्मा गांधी के प्रति रोस उत्पन्न हो गई लेकिन पूरे राष्ट्र की तरह है भगत सिंह भी महात्मा गांधी को काफी सम्मान करते थे। लेकिन फिर भी महात्मा गांधी के हिंसात्मक आंदोलन के बजाय अहिंसात्मक आंदोलन को बेहतर समझा इसके बाद उन्होंने कई आंदोलन में शामिल हुए।
उनके इस क्रांतिकारी दालों में शामिल थे सुखदेव, सुभाष चंद्र बोस और राजगुरु, 9 अगस्त 1925 को भारतीय स्वतंत्रता सेनानी की क्रांतिकारियों द्वारा भयंकर युद्ध छेड़ने के इरादे से ब्रिटिश सरकार के ही खजाना लूट लेने का एक ऐतिहासिक घटना हुआ था। जिसे आज के समय में हम काकोरी कांड के नाम से जानते हैं। दोस्तों काकोरी कांड में पकड़े गए क्रांतिकारी में से चार को फांसी की सजा और 16 को 8 साल से उम्र कैद की सजा सुनाई गई।
इस बात से भगत सिंह इतनी ज्यादा क्रोधित हुए कि उन्होंने अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा को हिंदुस्तान पब्लिक संगठन में विलय कर दिया। 30 अक्टूबर 1928 यह वही साल था जिसमें साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए भयंकर प्रदर्शन हुए इसी प्रदर्शन में लाठी चार्ज के दौरान लाजपत राय घायल हो जाता है। उसके बाद उनकी मृत्यु हो जाती है जिसे देखकर भगत सिंह और भगत सिंह के दोस्त काफी क्रोधित होते हैं।
तब एक दिन भगत सिंह और उनके दोस्तों ने एस्कॉर्ट को मारने की योजना बनाई जो किया अंग्रेजी पुलिस के पुलिस आफ सुपरीटेंडेंट था। 17 नंबर 1928 का भगत सिंह लाहौर की कोतवाली पर एस्कॉर्ट का इंतजार कर रहे थे लेकिन एस्कॉर्ट की जगह पर सैंडर्स आया वह भी अंग्रेजी शासन का नुमाइंदा था। राजगुरु और भगत सिंह ने सेंडरसन को गोली मार कर हत्या कर दी। इस तरह से इन्होंने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लिया। इसी घटना के बाद भगत सिंह ने अपने बाल और दाढ़ी कटवा लिए थे ताकि उन्हें कोई पहचान ना सके
एक बार की बात है गांव के गरीब मजदूरों पर अत्याचार करने के लिए मजदूर विरोधी जेल पास करवाना चाहते थे लेकिन भगत सिंह और उनके दल को यह मंजूर नहीं थी। इसीलिए बटुकेश्वर दर्द और भगत सिंह मिलकर दिल्ली के असेंबली पर बम गिराया हालांकि यह काफी सावधानी से गिराया गया ताकि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु ना हो। लेकिन फिर भी उनको और उनके अन्य साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस बिल को विरोध करने के लिए वे और उनके दोस्तों ने 100 दिनों से ऊपर भूख हड़ताल किया जिसमें उनकी एक साथ एक की मृत्यु हो गई जिससे अंग्रेज ने इस बिल को पास नहीं करने को मान गया। उसके बाद उन्हें 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा सुनाई गई।
जब 23 मार्च में से किसको अधिकारी द्वारा भगत सिंह को फांसी देने के लिए जेल में से लाने गया तब वह किताब पढ़ रहे थे तब उन्होंने कहा कि थोड़ा थोड़ी है अभी एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिलने तो दीजिए। फिर उन्होंने कुछ देर देखकर कारण उसे किताब को ऊपर फेंका और मुस्कुराते हुए चल दिए। तीनों दोस्त मस्ती में इंकलाब का नारा लगाते हुए हंसी के तख्ते पर चढ़ गए फांसी दे दिया गया।
तो दोस्तों यह था भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की कहानी अगर आप ऐसे ही महान लोगों की कहानी पढ़ना चाहते हैं तो अल्बर्ट आइंस्टीन के बायोग्राफी के बारे में पढ़ सकते हैं। और जान सकते हैं कि कैसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1000 से भी अधिक बार असफल होने के बाद भी वाल्व का आविष्कार किया।