Reality of Gutkha Pan Masala: गुटखा पान मसाला की सच्चाई और इतिहास

Reality of Gutkha Pan Masala: भारत में कई तरह के गुटका पान मसाला प्रचलित है। आए दिन गुटका पान मसाला से होने वाले कैंसर को लेकर अवेयरनेस दी जाती है इसके साथ ही गुटका पान मसाला का इस्तेमाल करने वाले लोग बिना साफ सफाई देकर कहीं पर भी थूक देते हैं। आखिर इस गुटखा पान मसाला की शुरुआत कैसे हुई कैसे लोग गुटखा पान मसाला खाना शुरू कर देते हैं और उसके लत में डूब जाते हैं और छोड़ना काफी मुश्किल हो जाता है।

गुटखा के बारे में यूं कहे कि गुटखा खाने वाले को लेकर अभी हाल ही में एक न्यूज़ आया था कि लोग सड़कों पर बसों में और कई जगहों पर थूकते तो है लेकिन हद तो तब हो गई जब एक व्यक्ति ने एरोप्लेन में गुटखा खाकर थुक दिया था। आज के इस आर्टिकल में हम Reality of Gutkha Pan Masala को देखेंगे और इसके इतिहास को समझने की कोशिश करेंगे।

Reality of Gutkha Pan Masala

यूं देखे तो गुटखा पान मसाला का इतिहास काफी पुराना है लेकिन भारत में इसकी शुरुआत 1965 में कानपुर केक स्टेडियम में हुआ था। जब एक मैच के दौरान पहली बार एक व्यक्ति को गुटका चलते हुए देखा गया था। गुटखा चलते उसे व्यक्ति की फोटो इंटरनेट पर इतनी तेजी से वायरल हुआ कि लोग इसके बारे में जानने और इसे खाने को उत्सुक होने लगे। गुटखा की सबसे खास बात यह थी कि कुछ पैसे में एक छोटा सा पैकेट मिलता है जिसमें कसौली और कुछ अन्य पदार्थ होते हैं जिसे लोग चबाकर इधर-उधर थुकते है।

उसके बाद से पान मसाला भारत में काफी प्रचलित हुआ पहली बार भारत में पान पराग का ऐड भारत के सेलिब्रिटी शम्मी कपूर द्वारा किया गया था जिसमें वह कहते हैं कि बारातियों का स्वागत पान पराग से कीजिएगा। लेकिन सच्चाई यही है कि उसे समय उस ऐड में सिर्फ पान पराग के बारे में ही बताया गया था। यह कहानी है गुटका पान मसाला के लेकिन भारत में खैनी और सिगरेट यानी कि तंबाकू कैसे आए और उसके शुरुआत कैसे हुई।

भारत में सिगरेट और खैनी की शुरुआत

यह बात सन 1609 की है जब अकबर के दरबार में एक पुर्तगाली आया था जिसने अकबर को तंबाकू और चिराग जिसे आज के समय में सिगरेट कहा जाता है दिया था। अकबर को यह काफी पसंद आया था। जब अकबर के दरबारी ने अकबर को धूम्रपान करते हुए देखा तो वह काफी आश्चर्य हुए उनका भी मन हुआ तंबाकू के धुएं को गले में भरकर बाहर फेंकने की।

इसके बाद अमेरिका के लोगों ने तंबाकू को बीड़ी में भरकर पीना शुरू किया इसके बाद इंग्लैंड के लोगों ने इस तंबाकू को कागज में लपेटकर सिगरेट की तरह पीना शुरू कर दिए। भारत के नागरिक को 1609 में तंबाकू के बारे में पता चला जब एक पुर्तगाली अकबर के दरबार में लेकर आया था लेकिन सवाल यह है कि आखिर इसकी शुरुआत कब हुई।

आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका के पुरातात्विक लोगों ने 12600 साल पहले ही तंबाकू का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया तो सही है तो हमने आपको विदेशी तरीके बताएं जिसमें लोगों ने तंबाकू का इस्तेमाल किया है लेकिन आखिर भारत में लोग तंबाकू का इस्तेमाल कैसे करते थे। यह कहानी भी काफी इंटरेस्टिंग है।

भारत में तंबाकू का इस्तेमाल

भारत में सबसे पहले तंबाकू का इस्तेमाल एक हल्के के रूप में किया गया 15वीं शताब्दी में अकबर के दरबार में एक वेद ने ओके का आविष्कार किया था। हुक्के को लेकर कहा गया कि पानी के माध्यम से किया गया धूम्रपान सेहत के लिए उतना हानिकारक नहीं होता है। लेकिन आधुनिक शोध के अनुसार यह बिल्कुल गलत है।

इसके ठीक 100 साल बाद जब तंबाकू तुर्की पहुंचा तब वहां के वैज्ञानिकों की नजर इस पर पड़े और फिर उन्होंने इस पर रिसर्च करना शुरू कर दिया। रिसर्च के बाद उन्होंने इस तंबाकू की मदद से कई दवाइयां का आविष्कार किया। शुरुआती दिनों में इसका असर लोगों पर काफी अच्छा रहा लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने देखा लोगों में चक्कर आना, सस्ती शरीर में दर्द जैसे समस्या उत्पन्न होने लगे। तभी वहां के सरकार नहीं से बन कर दिया। लेकिन अन्य जगहों पर अभी भी इसका इस्तेमाल है जारी रहा।

कई जगह भोपाल लोक तंबाकू का इस्तेमाल नशे के लिए करते थे भारत के लोगों का मानना है कि तंबाकू गुटखा का इस्तेमाल करने से उनका टेंशन कम रहता है और सिगरेट पीने से थकान दूर हो जाती है। वह ग्रामीण इलाकों का कहना है कि गुटखा खाने से दांतों में कीड़ा नहीं लगते हैं। कुछ लोगों का तो मानना है कि खुद का पान मसाला का इस्तेमाल करना उनके पाचन के लिए सही रहता है।

हालांकि यह अभी सभी बातें झूठ है वैज्ञानिक तौर पर इसके कोई प्रूफ नहीं है अगर ऐसा होता तो गुटखा खाने से कोई बीमार नहीं पड़ता कोई रिसर्च में देखा गया है क्या गुटखा खाने वाले लोग अधिकतर कैंसर रोग से है ग्रसित होते हैं। हो के रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष गुटखा खाने 10 लाख लोगों की मृत्यु होती है यानी कि प्रत्येक दिन 127 लोग गुटखा खाने की वजह से मर रहे हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि राज्य सरकार या देश के प्रधानमंत्री द्वारा गुटके को पूर्णता बंद नहीं किया जा सकता है। इसे एक स्पेसिफिक टाइम तक ही बंद किया जाता है। जैसे कि कुछ राज्यों में 2 साल के लिए तो कुछ राज्यों में 5 सालों के लिए गुटखा को बन कर दिया जाता है।

यह जानते हुए की प्रतिदिन इतने लोग मर रहे हैं फिर भी गुटखा को बंद नहीं किया जा सकता। एक रिसर्च के अनुसार पहले गुटका का असर लोगों के मुंह और कुछ बीमारियों तक सीमित तथा लेकिन अब इसका असर महिलाओं में बांझपन और पुरुषों में नापसंद का कारण बन रहा है।

कई बार आपके मन में आता होगा कि आखिर लोग गुटखा खाना तो शुरू कर देते हैं लेकिन छोड़ना इतना मुश्किल क्यों होता है तो इसका मुख्य कारण होता है गुटखा में मौजूद निकोटीन जो गुटखा खाने वाले लोगों को आदत लगने का काम करता है। अभी आप गुटखा खाते हैं तो यह आपके मुंह के अंदर के नसों को डैमेज करता है और उसमें इसे स्वाद का रंग भरता है जिससे आप अगली बार फिर गुटखा खाने की इच्छा होगी।

यह इच्छा इतना बढ़ जाता है क्यों कई लोग तो बिना गुटके के रहे ही नहीं सकते। गुटखा को छुड़ाने का सिर्फ एक ही तरीका है उसके जगह पर किसी अन्य चीज का सेवन करना जो लंबे समय तक मुंह में रहे लेकिन उसका कोई दुष्प्रभाव ना पड़े। आज किस आर्टिकल में हमने आपको गुटका की सच्चाई और इतिहास के बारे में बता दिया है अगर आप ऐसे ही रिसर्च और मिस्टीरियस कहानी पढ़ना पसंद करते हैं तो आप हमारे कैटेगरी को खोल कर देख सकते हैं उसमें आपको विभिन्न कहानी देखने को मिल जाएगी।

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